मुद्दा कोई भी, लिखने को कम नहीं होता
उसे पढ़ा नहीं जाता जिसमे दम नहीं होता
ये मोहब्बत बड़े ही काम की तिजारत है
इसमें कोई जाती-कोई धरम नहीं होता
चाहकर भी बिमारी ला-इलाज रहती है
इस बेवफाई का कोई मरहम नहीं होता
हुआ क्या जो कभी झुकना भी पड़े
सच्ची मोहब्बत में अहम नहीं होता
इस हंसी में "नरेश" आंसू छुपा लेता है
भला कौन है जिसे कोई गम नहीं होता..
उसे पढ़ा नहीं जाता जिसमे दम नहीं होता
ये मोहब्बत बड़े ही काम की तिजारत है
इसमें कोई जाती-कोई धरम नहीं होता
चाहकर भी बिमारी ला-इलाज रहती है
इस बेवफाई का कोई मरहम नहीं होता
हुआ क्या जो कभी झुकना भी पड़े
सच्ची मोहब्बत में अहम नहीं होता
इस हंसी में "नरेश" आंसू छुपा लेता है
भला कौन है जिसे कोई गम नहीं होता..