जब भी मंच पे जाता हूँ
मैं ' दीपक ' हो जाता हूँ
फिर इस दुनिया में आकर
' गुप्ता जी ' कहलाता हूँ
सुकूँ मुझे है इज़्ज़त संग
पैसे चार कमाता हूँ
भाग्य मेरा भी चमकेगा
ख़ुद को ये समझाता हूँ
तू जो है मसरूफ़ अगर
चल मैं ही आ जाता हूँ
कवि - दीपक गुप्ता
मैं ' दीपक ' हो जाता हूँ
फिर इस दुनिया में आकर
' गुप्ता जी ' कहलाता हूँ
सुकूँ मुझे है इज़्ज़त संग
पैसे चार कमाता हूँ
भाग्य मेरा भी चमकेगा
ख़ुद को ये समझाता हूँ
तू जो है मसरूफ़ अगर
चल मैं ही आ जाता हूँ
कवि - दीपक गुप्ता