Friday, 15 July 2016

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nahi maloom ye mujhko ki meri

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नहीं मालूम ये मुझको कि मेरी ज़द कहाँ तक है
ये मेरे शे'र बोलेंगे कि ये आमद कहाँ तक है


मुक़द्दर में उजाले हैं तो चमकेंगे यक़ीनन हम
ज़रा हम भी तो देखें तीरगी की हद कहाँ तक है

न दौलत से ही तय होगा न शोहरत से ही तय होगा
तेरा किरदार बोलेगा कि तेरा क़द कहाँ तक है

​उड़ानों के नशे में हैं न जाने कब कहाँ पहुँचें
परिन्दों को पता क्या आस्मां की हद कहाँ तक है

बुज़ुर्गों के तज़ुर्बों तक पहुँचना चाहते हैं गर
ज़मीं की तह में जाकर देखिए बरगद कहाँ तक है 
 
 
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