Sunday, 17 July 2016

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ना अमरीका,ना लन्दन,ना कश्मीरों से आती है

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 ना अमरीका,ना लन्दन,ना कश्मीरों से आती है,
दहशत की बदबू मज़हब की तकरीरों से आती है,

सच बोले तस्लीमा,मज़हब से दुत्कारी जाती है,
कव्वाली गाने वाले को गोली मारी जाती है,

क्यों तारिक फ़तेह जैसों का देश निकाला होता है?
सूरा,आयत के अर्थों में गड़बड़झाला होता है,

मौलानाओं की दाढ़ी में ज्ञान उलझ कर लटका है,
दहशत के मज़हब का मुद्दा विस्फोटों में अटका है,

आयत कैसे शामिल होती,गला काटने वालों में,
कमी ज्ञान में है या फिर इन ज्ञान बांटने वालों में,

तब तक लाशों पर मज़हब के झंडे ताने जाएंगे,
जब तक ज़ाकिर नाईक जैसे नायक माने जाएंगे,

सूट और टाई में इसने ज्ञान गज़ब का पेला जी,
ढाका का आतंकी निकला इस ज़ाकिर का चेला जी,

ओसामा को हीरो कहता,अमरीका को गाली जी,
आम मुसलमाँ इसको सुनकर खूब बजाये ताली जी,

भेजे पर लटकाकर ताले,इल्म सीखने आते है,
ज़ाकिर के संग मिलकर नारा ए तदबीर लगाते हैं,

कमी मियां ज़ाकिर में है या उसको सुनने वालों में,
हम काले को ढूंड रहे हैं,पूरी काली दालों में,

इस्लामी कौमों के आगे दिक्कत सच में भारी है,
कौन सुधारेगा मज़हब ये किसकी ज़िम्मेदारी है?

कब तक ये सच्चाई पर इल्मों का पर्दा डालेंगे,
"कोई धर्म नही दहशत का",कबतक कहकर टालेंगे,

या फिर यूँ ही लगे रहेंगे,टीवी पर बतियाने में,
ज़ाकिर जैसे सांपो को चम्मच से दूध पिलाने में,

इससे पहले,दर्पण भी तुमसे घबराये और डरे,
जिस दुनिया में रहते हो वो दुनिया तुमसे घृणा करे,

उठ जाओ,तौबा कर लो इन पाखंडी मक्कारों से,
मज़हब को महफूज़ रखो,शरिया के ठेकेदारों से,

ज़ाकिर जैसे ज़ाहिल की औकात बताना शुरू करो,
करो कौम से खारिज,इसको आँख दिखाना शुरू करो,

कवि गौरव चौहान कहे,कूड़े कचरे को साफ़ करो,
हो सच्चा इस्लाम ज़मी पर,कुछ ऐसा इन्साफ करो,

जो सबसे है पाक धरम,इस्लाम तुम्हारे हाथो में,
दहशत का या चाहत का?पैगाम तुम्हारे हाथो में,
----कवि गौरव चौहान

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