Tuesday, 12 July 2016

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jab singho ko bakri ke aage

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जब सिंहो को बकरी के आगे मिमियाते देखूंगा
अपराधी,गुंडों को माँ का चीर जलाते देखूगा
जब जब हंसो को देखूंगा कागो की अगवानी में
ज्वाला की लपते देखूंगा माँ गंगा के पानी में
जब गागर के आगे सागर घुटनों तक झुक जायेगा
सूरज खुद ही अपनी किरणों का सौदा कर आएगा

तब तब मै हुंकार भरूँगा गली गली चौबारों से
कवि हूँ,जाकर बात करूँगा दिल्ली के दरबारों से!!!
-कवि विख्यात मिश्रा





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